प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 18)
आदित्य थक हारकर परेशान सा सोफे पर बैठा हुआ था। उसके चेहरे पर बारह बजे हुए थे, आज सुबह सुबह उन्हें एक मुखबिर द्वारा उस रहस्यमय अपराधी के ठिकाने का पता चला, वे वहां गये लेकिन उसे काफी देर बाद उन्हें एहसास हुआ कि वे अपने पैरों से चलकर मौत के मुँह में पहुँच गए थे। हालांकि अनि की सतर्कता की वजह से किसी की जान को नुकसान नहीं हुआ मगर उसकी बेस्ट फ्रेंड मेघना सहित कई पुलिसकर्मी हॉस्पिटल पहुँच गए थे। आदित्य ने उस कार वाले को पकड़ना चाहा पर उसके हाथ नाकामी के सिवा कुछ नहीं लगा। वह उस जगह चला गया था जहां उसकी सिर्फ मौत से ही मुलाकात हो सकती थी। दिनभर की गहन छानबीन में भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ, सारे पुराने क्लू बर्बाद जा रहे थे। वह चिन्ह, अपराधियों का ठिकाना, यहां तक की एक अपराधी भी उसके हाथ आ सकता था मगर सब व्यर्थ!
आदित्य बुरी तरह झुंझलाया हुआ था, उसने कॉल करके मेघना का हाल जानना चाहा मगर फिर कुछ सोचकर मोबइल फिर सोफे पर ही पटक दिया और रिमोट उठाकर टीवी ऑन किया। टीवी पर बहस चल रही थी, आरोप-प्रत्यारोप जारी थी! आदित्य का इसमे कोई इंटरेस्ट नहीं था उसने चैनल बदलना चाहा मगर बहस का मुद्दा देखकर उसके पैरों तले जमीं खिसक गई।
"नरेश भाई और काव्या नहीं रहे..!" उसका दिमाग कुंद पड़ गया वह जैसे जैसे न्यूज़ देखता जा रहा था उसका दिमाग काम करना बंद करते जा रहा था। जब उसने उन दोनों के मृत शरीर को टीवी पर देखा तो उसकी अंतरात्मा कांप गयी, आँखों से बरबस ही आँसू निकल पड़े, आज उसने फिर कुछ ऐसे खास इंसानो को खो दिया जिन्हें वह अपना कह सकता था।
"उफ्फ्फ..! इतनी निर्दयता! इतनी वीभत्सता!! उन दोनों ने किसी का क्या बिगाड़ा था?" वह अपने होशोहवास खोने वाला था, साँस थमती जा रही थी मगर आँसुओ की लड़ी लग गयी थी। काव्या में वह अपनी छोटी बहन अनिका का अक्स देखता था और नरेश जी के रूप में अपने पिता को पा लिया था। वे उसके सगे भाई के समान था, उनके शरीर की क्षत-विक्षत देखकर वह पागल सा हो गया था। पिछले कुछ दिनों से यहीं तो देखना पड़ रहा था उसे, पहले बच्चों के विभत्स मौत का नज़ारा, आज अपने दूसरे परिवार को मरते देखा था उसने! आज फिर से अनाथ हो गया था वो, या शायद आज देहरादून ही अनाथ हो चुका था। मगर ऊपर की कुर्सियों पर मौजूद लोगों को इस दुःख की घड़ी से कोई फर्क नहीं पड़ा था, उनके लिए यह सब किसी चुनावी मुद्दे से अधिक न था, टीवी पर अब भी बहस जारी थी।
सहसा आदित्य की चेतना जगी, वह तेजी से दरवाजे की ओर भागा, उसका चेहरा गुस्से और शोक के कारण तमतमाकर लाल हो गया था। उसने अपनी गाड़ी निकाली और तेजी से नरेश के घर की तरफ रवाना हुआ। उसके दिल में एक कसक सी थी, उसे अब तक इस बात पर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि नरेश और काव्या मर गए। सबसे बड़ी बात इतनी बड़ी घटना की खबर भी उसे नहीं दी गयी थी। मारे गुस्से के उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था, थोड़ी ही देर बाद वह नरेश के घर के बाहर खड़ा था।
चारों तरफ उमड़ी भीड़ को देखकर वह समझ चुका था कि यह खबर पूरे देश में जंगल की आग की तरह फैल चुकी है। चारो तरफ भीड़ में नारेबाजियाँ चल रहीं थी, कुछ लोग दहाड़े मार-मारकर रो रहे थे। कुछ राजनीति से जुड़े विशेष लोग उन्हें महान और कभी पूरी न होने वाली क्षति बता रहे थे। जितनी मुँह उतनी बातें… गिरगिट के रंग कौन ही जाने!
इसमें कुछ लोग सामान्य जन थे, जिन्हें वास्तव में दुःख हो रहा था मगर आज तक किसी ने इस साधारण जनता की सुनी ही कहाँ जो अब सुन लेते! किसी तरह उस भीड़ में जगह बनाते हुए आदित्य, नरेश के घर तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था। अब वो ऐसे लोगों के बीच घिरा था जो किसी के मौत पर शोक व्यक्त करना भी फैशन समझते हैं। मगरमच्छ के आँसुओ को देखकर आदित्य के होंठों पर गुस्से भरी मुस्कान आ गयी।
"कमबख्तों! अब तो छोड़ दो उन्हें! अभी भी उन्हीं के नाम पर वोट लेना है तुम्हे?" वह गुस्से से बुदबुदाया अब वह नरेश के घर के दरवाजे तक पहुँच चुका था। वह जगह पूरी तरह सील कर दी गयी थी, मेघना खुद यहां की जाँच पड़ताल कर रही थी मगर उसे कुछ हासिल न हुआ था।
"आदि तुम!" मेघना आदित्य को देखकर हैरान रह गयी। आज वह बहुत अधिक गुस्से में लग रहा था।
"तुम यहाँ?" आदित्य भी उसे यहां देखकर हैरान था। "तुमने भी मुझे बताना जरूरी नहीं समझा न? यह जानते हुए कि वे मेरे लिए क्या हैं!" आदित्य बहुत बुरी तरह बिफर पड़ा, उसकी आँखों से नीर बह चले। वह बैरिकेट को हटाकर अंदर घुसता गया।
"आदि.. मेरी बात सुनो!" मेघना उसे समझाने के लिए बोली।
"आज नहीं मेघ प्लीज!" वह बिना पीछे मुद्दे दरवाजे को धकेलकर ऊपर चला गया। उसने चारों तरफ छानबीन की मगर कुछ हाथ न लगा, वह पागल सा घर का एक-एक कोना ढूंढने लगा पर अब भी उसे कुछ न मिला। वह बुरी तरह घबराया हुआ था, जब उसे कुछ हाथ न लगा तो वापस नीचे आ गया।
"उनकी बॉडी कहाँ है मेघ?" उसने चीखते हुए पूछा।
"वे पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा चुका है आदि! आसपास के लोगों ने भी इस बात की गवाही दी है कि रात में तकरीबन दो-तीन बजे यहां भीषण धमाका हुआ था, अब पोस्टमार्टम से ही सच निकलकर आएगा। आदि जरा सब्र कर! जब भी मुझे कुछ होता है तुम संभालते हो मुझे…!" मेघना ने उसको सब बताते हुए कहा।
"नहीं….! भगवान तेरी मुझसे ही क्या दुश्मनी है जो मुझसे मेरा सब छीन लेता है।" आदित्य धड़ाम से जमीन पर गिर गया, उसके होश खोने लगे।
"एम्बुलेंस बुलाओ!" मेघना चीखीं।
"नहीं! जब तक मैं पुख्ता जांच नहीं कर लूंगा मैं नहीं मानूँगा..! आह..!" उसने उठने की कोशिश की मगर फिर धड़ाम से गिर गया। दिनभर का थका हुआ शरीर जबरदस्त मानसिक तनाव को नहीं झेल सका, वह बेहोश हो चुका था।
"एम्बुलेंस बुलाओ!" मेघना ने एक कांस्टेबल को कहा। "किसी तरह यह भीड़ यहां से हटाना ही होगा, ये जो भी है हर रोज भीड़ लगाने का एक बहाना ढूंढ ही लेता है! पहले उन निरीह मासूमों की जान से खेला और अब …! हे भोलेनाथ!"
एम्बुलेंस आदित्य को लेकर चली गयी, भीड़ में कई और लोग घायल हो चुके थे मगर वे चाहते थे कि पहले उन्हें इंसाफ मिले, पहले नरेश जी के कातिल को कानून अपने शिकंजे में जकड़कर उनके हवाले कर फिर उसके बाद ही वे वहां से हिलेंगे। कुछ लोगो को पुलिस जबर्दस्ती हॉस्पिटल ले जा रही थी। रात गहरी होती जा रही थी, रोते बिलखते लोग अब भी वहीं थे, नेताओं के भाषण, आरोप-प्रत्यारोप जारी थे। जनता के गम और आँसुओ के बीच राजनीति का तवा गरम होता जा रहा था और कोई भी इसपर अपनी रोटी सेंकने से चूकने वाला नहीं था।
मेघना अब भी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुई थी, उसकी आँखें भारी होती जा रहीं थी, मगर किसी तरह उनसे अपनी पलकों को रोके हुए था। यह दृश्य देखकर उसका खून भी खौलने लगा था, एक पल को उसे लगा काश अरुण यहां होता तो शायद वह सब संभाल लेता। लेकिन सिर्फ लगने से क्या होता है, कुछ चाटुकारों ने तो नरेश जी का कातिल भी अरुण को ही ठहरा दिया था।
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रात तकरीबन नौ बजे! अरुण और अनि एक ढाबे पर बैठे हुए थे। अरुण ने दो-तीन दिनों से न ही खाना खाया हुआ था न ही सोया था। खाना नहीं खाने के कारण वह कमज़ोर होता जा रहा था, मगर उसके चेहरे पर किसी तरह के अफसोस के भाव नहीं थे। वह अपने फैसले पर अडिग था, उसने अपने सामने मासूमों को मरते देखा था बिना उनके हत्यारे को नरक पहुचाएं वह कैसे खा सकता था। उसके पास वाली टेबल पर बैठा अनि मजे से चीज़-बर्गर खा रहा था और टीवी पर डिबेट देखकर बुरी तरह हँसे जा रहा रहा था, मगर उसे पता था वह यहां नहीं हँस सकता इसलिए जब भी हँसी आती थी वह मुँह पर रुमाल रख लेता था।
"थोड़ा सा तो खा लीजिये मिस्टर बर्बादी! मानते हैं कि आपको बहुत दुख हुआ है, यकीन मानो मुझे उनसे भी कहीं ज्यादा दुख हुआ है मगर अगर शरीर की ताकत आधी हो जाएगी तो उनकी आबादी कैसे कम करोगे जो तुम्हारे साथ ऐसी बाजी खेल रहे हैं।" अनि ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा। हालांकि उसने पहले भी उससे खाने के लिये पूछा था मगर अरुण ने इनकार कर दिया था।
"अरुण अपने फैसलें कभी नहीं बदलता मिस्टर अनि! और तुम मुझे अरुण ही कहो तो ज्यादा अच्छा लगेगा सुनने में!" अरुण ने सपाट लहजे में कहा। अनि को कुछ कहते न बना, वह बस चुपचाप बर्गर खाने में लग गया।
'ये ये हैं मिस्टर अरुण! यानी मिस्टर बर्बादी। ये श्रीमान जी केवल एक ही कार्य जानते हैं वो है बर्बाद करना! अभी भी इनके दिल में किसी को बर्बाद करने की जबरदस्त इच्छा है।
मेरे ख्याल से उस घटना को तीन या चार दिन हो गए, इस बन्दे ने तब से खाना नहीं खाया है, हां मैंने कहा कि अगर किसी का धंधा बन्द कराना है तो फिट रहना होगा मगर जब तुम्हारा किसी अक्ल के अंधे से पाला पड़ेगा तो समझ जाओगे, सच कहता हूँ यार झेल नहीं पाओगे।
मैंने समझाया कि भाई खा ले वरना अपनी अनारकली को कैसे छुड़ाएगा मगर ये तो इतना गुस्सा है कि मुझे डर लगने कगे है कहीं मेरे पीछे भी अनार बम न छोड़ दे! और ये न्यूज़ वाले.. इनका छोड़ो ये लोग जो डिबेट में आते है.. इनको पैसे और राजनीति के अलावा कुछ दिखता भी है कि नही।
कैसे दिखेगा.. जरूरी थोड़े है कीचड़ में कमल ही खिले.. मेंढक भी टर्रा सकता है इन मामाशय की तरह! बस चिल्लाए जा रहे हैं, का चिल्ला रहे हैं खुद उनकी अम्मा को भी पता नही।
पर हम है आपके प्यारे हनी बनी यानी मस्तमौला अनि! हम हर हाल में व्यस्त रहते हैं पर फिलहाल किसी का थोड़बा नष्ट करने का बहुत नम' कर रहा है। एक दिन उसके चेहरे पे मैं चौबीस जरूर बजाऊंगा जिसने इस मेरे इस मासूम से चेहरे पर बारह बजा दिया है।
अच्छा अब तो मैं खा चुका, खाना बहुत टेस्टी है, पता नहीं ये बर्बादी जी कान मेरा मतलब नाक में क्या ठूंसे हुए हैं जो इस ख़ूबशु का उनपर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है..!'
"तुम्हारा सपने में बड़बड़ाना फिर से शुरू?" अरुण ने अनि के कंधों पर हाथ रखा।
"नहीं!" अनि आंख मलने लगा। "अभी अभी तो खाना खत्म किया है मैंने! बहुत टेस्टी था..।" कहते हुए वह टिश्यू पेपर से हाथ पोछने लगा।
"अब चलों यहां से..!" कहते हुए अरुण वहां से बाहर जाने लगा, अनि उसके पीछे लपका।
'क्या गजब इंसान है यार! एटीट्यूड की चलती फिरती दुकान है ये तो.. कौन कहता है बस लकड़ियां एटीट्यूड दिखाती हैं! एक बार इनसे मिलवा दो बिचारे का हृदयपरिवर्तन हो जाएगा।' अनि खुद से बुदबुदाया।
"कुछ कहा तुमने?" अरुण खड़ा होकर उसे रोकते हुए पूछा।
"नहीं तो!" अनि ने तपाक से कहा। 'कमाल का।इंसान है यार! अब क्या मैं मन में भी न सोचूं?'
"तो फिर चलो!"
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"आज बड़े बॉस कहीं बिजी हैं! लेकिन हर काम उनके दिए टाइम पर ही होना चाहिये।" केशन ने एक ट्रक में बैठे दो पहलवान जैसे नकाबपोशों से कहा।
"हमारा मकसद सबसे पहले है! बॉस का काम वक़्त से पहले पूरा कर दिया जायेगा।" उन दोनों के कुछ बोल पाने से पहले ट्रक के ड्राइवर ने कहा।
"याद रखना इसमें करोड़ो का माल है! हालांकि बॉस ने सभी को उलझाकर रख दिया है लेकिन फिर भी सावधान रहना।" केशन ने ट्रक की बॉडी को थपथपाते हुए कहा।
"इसमें हमारा मकसद भरा है, यह बात हम भी जानते हैं! हम वक़्त से पहले ही अपने मकसद को पूरा करके दिखाएंगे।" एक नकाबपोश बोला। वह गजब के पहलवानी जिस्म का मालिक था।
"इसीलिए बॉस ने अपने विश्वासपात्रों यानी तुम्हें चुना है अकरम! अब जल्दी निकलों, बाकी पुलिस का ध्यान हम बंटा लेंगे।" केशन ने उसे जाने के निर्देश देते हुए कहा।
"अब अपना मक़सद पूरा होने के बाद मिलते हैं!" अकरम के इतना कहते ही ट्रक स्टार्ट हो गया, केशन के एक इशारे से वहां तकरीबन दो सौ मीटर की सुरंग बनती चली गयी, ट्रक वहां से निकलकर सीधा मैन रोड पर पहुंच गया।
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"पिछली बार मैंने जिस ट्रक को पकड़ा था, वो।मसूरी से जंगल की ओर जा रहा था, नरेश और काव्य को भी मसूरी में ही किडनैप किया गया था। तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि देहरादून में सब दिखावे का हो रहा है और असली चाल मसूरी में चली जा रही है?" बाइक चलाते हुए अनि ने अरुण से पूछा।
"नहीं!" अरुण ने एक शब्द में उत्तर दिया।
"यकीन करो! जो ट्रक मैंने पकड़ा था उसमें कोई बच्चे नहीं थे और वह सेम उसी ट्रक की तरह था जिसे तुमने पकड़ा था, जैसा ट्रक उसी दिन बम धमाके में उड़ गया था!" अनि ने समझाते हुए कहा।
"और मैं यकीन क्यों करूँ?" अरुण ने सपाट लहज़े में पूछा। "मैं तो तुम्हें जानता ही नही!"
"मेरा नाम अनि है!"
"जानता हूँ!"
"तो? मैं एक सीक्रेट एजेंट हूँ, जिसे इस मिशन को सौंपा गया है।"
"ये भी जानता हूँ!"
"तो क्या नही जानते तुम?" अनि झुँझला गया।
"मैं तुम्हारी बातों का विश्वास क्यों करूँ?" अरुण ने फिर से सवाल किया।
"क्योंकि हम दोनों का मक़सद एक है..!"
"तुम मेरा साथ क्यों देना चाहते हो? यह तो क्लियर करो?"
"अरे मेरे दादा! बात ये है कि मेरी एक 26 साल की जवान लड़की है, मैं उसके लिए एक अयोग्य वर की तलाश कर रहा हूँ और आप उसके लिए सर्वथा अयोग्य है। इसीलिए मैं चाहता हूँ कि आप जीवित रहो।" अनि ने गुस्से से कहा।
"मगर अभी तो तुम खुद 21-22 के हुए हो?" क्रेकर की आवाज उभरी, न चाहते हुए भी अरुण धीरे से हँस पड़ा।
"बीच में बोलना जरूरी था क्या?" अनि बनावटी गुस्सा करते हुए बोला। "चलना है या नहीं!" उसने स्पष्टया पूछा।
"चलो! शायद तुम्हारी उल्टी खोपड़ी से ही कोई सुराग मिल जाये!" अरुण ने व्यंग करते हुए कहा।
"हुंह…! चल क्रेकर!" अनि ने मुँह बनाया। क्रेकर की गति तेजी से बढ़ती चली गयी।
क्रमशः….
Seema Priyadarshini sahay
29-Nov-2021 04:31 PM
बहुत बढ़िया, रोचक कहानी
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Niraj Pandey
12-Nov-2021 08:06 PM
बहुत ही शानदार
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